Sunday, October 31, 2010

मैं दिव्या जी से इल्तमास करूंगा कि आप खुश रहें। आप खुश रहेंगी तो आपके दुश्मन ज़रूर दुखी रहेंगे। खुदा आपको अपनी अमान में रखे , आमीन या रब्बल आलमीन !


डा. अनवर जमाल के ब्लाग को मैं बेहद पसंद करता हूं।

ताज़ा पोस्ट भी मुझे अच्छी लगी। इसमें एक बहन ने अच्छे सवाल किये हैं-

आपकी इस पोस्ट पर मेरा आपसे दूसरा प्रश्न है। जो इस प्रकार है - आप एक विद्वान् व्यक्ति हैं, जिसने हिन्दू और इस्लाम के बहुत से ग्रन्थ पढ़े हैं। क्या इतना पढने लिखने के बाद भी एक इंसान सदियों तक दुसरे धर्म की कमियाँ ही गिनता रहता है ? क्या आप अपने धर्म से खुश नहीं हैं ?

जितना अच्छा सवाल है उतना ही प्यारा जवाब भी है -
हिन्दू समाज मेरे अपने लोगों का समाज है, मेरे पूर्वजों का समाज है, मेरा अपना समाज है। उन्हें संकट में घिरा देखकर मेरा दुखी होना स्वाभाविक है। इनसान के संकटों से उसके कर्मों का सीधा संबंध है। अगर आज नक्सलवादी रोटी और रोज़गार के लिए आतंक मचा रहे हैं, अगर 2 लाख से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं, अगर अकेले उत्तर प्रदेश में मलेरिया से हज़ारों मर चुके हैं और ग़रीबों को रोटी और इलाज मयस्सर नहीं है तो पत्थर की मूर्तियों पर अरबों-खरबों रूपये बर्बाद करना राष्ट्रद्रोह भी है और संवेदनहीनता भी। ईश्वर की बनाई जीवित मूर्तियां तड़प-तड़प कर मर रही हों और लोग अपनी बनाई बेजान मूर्ति के आगे खुशी से नाचते हुए बाजे बजा रहे हों ?यह धर्म नहीं है बल्कि अपने मन से निकाली गईं परंपराएं हैं जिन्हें धर्म के नाम पर किया जाता है। इस तरह की परंपराओं को वैदिक ऋषियों ने कभी न तो खुद किया और न ही कभी समाज से करने के लिए कहा, जिन्हें हिन्दू धर्म का आदर्श समझा जाता है। तब ‘धन उड़ाऊ और जग डुबाऊ‘ परंपराओं को क्यों किया जाए ? कोई रीज़न तो दीजिए।ऋषि मार्ग से हटने के बाद हिन्दू समाज भटक गया है। इस भटकाव में ही वह यह सब कर रहा है जिससे मैं उसे रोक रहा हूं और आप मुझे रोकने से रोक रही हैं। सही बात बताना मेरा फ़र्ज़ है और उसे मानना आपका। मैं अपना फ़र्ज़ अदा कर रहा हूं, आप भी अपना फ़र्ज़ अदा कीजिए।आपने पूछा है कि क्या मैं अपने धर्म से, इस्लाम से खुश नहीं हूं ?‘इस्लाम‘ का अर्थ है एकनिष्ठ भाव से केवल एक परमेश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण करना। मैं इस्लाम से बहुत ज़्यादा खुश हूं, इतना ज़्यादा खुश हूं कि आपको भी अपनी खुशी में शरीक करना चाहता हूं। मेरे लिए हिन्दू धर्म इस्लाम का विरोधी नहीं है बल्कि उसी का एक पर्यायवाची है, अरबी शब्द इस्लाम का ही वह एक हिन्दी नाम है। आपको भी इस गहरी हक़ीक़त को जान लेना चाहिए, मैं बस यही चाहता

ताज़ा पोस्ट का लुत्फ़ उठाते हुए जब मैंने कमेन्ट्स पर नज़र डाली तो मेरा मन ख़राब हो गया। किसी ने ‘सुनील‘ के नाम से दिव्या बहन जी के लिए बहुत फहश कर रखी थी। मैं उस की इस हरकत से इतना दुखी हुआ कि मैं उसके ब्लाग पर भी नहीं गया। लेकिन यह देखने के लिए दिव्या बहन के ब्लाग पर गया कि आखि़र यह बहन कौन हैं ? और कोई बदबख्त आखि़र उनसे खफ़ा क्यों है ?

मैं दिव्या जी से इल्तमास करूंगा कि इस तरह के तंज़ सिर्फ़ हौसला शिकनी के लिए किए जाते हैं। अपना हौसला टूटने मत देना। मैं आपके साथ हूं , हम आपके साथ हैं और ऐसे ही साथ नहीं हैं बल्कि अपने पूरे ‘साधनों‘ के साथ आपके मददगार हैं। आप खुश रहें। आप खुश रहेंगी तो आपके दुश्मन ज़रूर दुखी रहेंगे। खुदा आपको अपनी अमान में रखे , आमीन या रब्बल आलमीन !


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यह मनोरोगी मेरे ब्लॉग पर आया और तकरीबन ५५ टिप्पणियां कीं , सभी में बहन दिव्या साहिबा को गलियाँ दे रखी थीं . bloger साहिबान इस पागल वहशी का इलाज बताएं ?
टिप्पणियां मैंने अलग सहेज ली हैं ।

इसकी वजह से मुझे कमेन्ट का बोंक्स बंद करना पड़ा .